KARNAL. 14.09.25-14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। संविधान सभा में हमारे महान पूर्वजों ने इसी दिन 1949 में हिंदी को स्वतंत्र भारत की राजभाषा के रूप में अंगीकार किया था। यह फैसला गहन मंथन और हिंदी को ले कर एक वर्ग की अंग्रेजी परस्त मानसिकता को आंशिक रूप से परास्त करके लिया गया था।
यह दिन नागरिकों को केवल हिंदी की महत्ता याद दिलाने का दिन नहीं, बल्कि हम सब के लिए यह सोचने का भी है कि हिंदी को हम अपने प्रशासन, शिक्षा और व्यवहार की भाषा बनाने में कितने सफल हुए हैं। संविधान ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया, लेकिन यह केवल काग़ज़ों पर नहीं, जीवन और शासन की वास्तविक भाषा बने, यही इस दिवस का मूल संदेश है।
अपना हरियाणा हिंदी भाषी प्रदेश है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की 87 प्रतिशत आबादी की मातृभाषा हिंदी है। यहाँ की मिट्टी में हिंदी सहज रूप से बोली और समझी जाती है। हरियाणा की लोकसंस्कृति, किसानी और लोकगीतों में हिंदी बसी हुई है। लेकिन हिंदी दिवस पर ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण करें देखें तो स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। हिंदी सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों के द्वार पर बेसहारा सी खड़ी नजर आती है। अदालतों से लेकर सरकारी दफ़्तरों तक अंग्रेज़ी का वर्चस्व आज भी बना हुआ है। उदाहरण के लिए हरियाणा उच्च न्यायालय और ज़्यादातर जिला अदालतों में अधिकतर कार्यवाही अंग्रेज़ी में दर्ज होती है, जबकि आम नागरिक हिंदी में ही अपनी बात कहता है। इसी तरह, सचिवालय की फाइलों में नोटिंग और आदेश अभी भी प्रायः अंग्रेज़ी में लिखे जाते हैं। परिणामस्वरूप आम आदमी और शासन के बीच एक अनावश्यक दूरी बन जाती है।
इस दूरी को पाटने और हिंदी को उसका स्थान दिलवाने के प्रयास जारी हैं। वर्तमान हरियाणा सरकार ने पिछले वर्षों में कई पहल की हैं। हरियाणा ग्रंथ अकादमी जो अब हरियाणा साहित्य और संस्कृति अकादमी का अंग है, ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के सहयोग से इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा की लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का हिंदी में प्रकाशन किया। कुछ विश्वविद्यालयों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में करने का विकल्प देने जैसी साहसपूर्ण पहलकदमी की। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश अब न्यायालय के पोर्टल पर हिंदी में भी सुलभ होने लगे हैं।
सरकारी कार्यालयों में हिंदी कार्यशालाएँ आयोजित हुईं और कर्मचारियों को हिंदी में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी पखवाड़ा और प्रतियोगिताएँ होती हैं। परंतु यह सब प्रयास तभी सार्थक माने जाएंगे जब हम हिंदी को सहज व्यवहार और कामकाज की भाषा बना पाएं।
यहाँ यह याद रखना आवश्यक है कि जब 1966 में हरियाणा राज्य का गठन हुआ, तब से ही हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। यह निर्णय हरियाणा की पहचान और उसकी सांस्कृतिक धारा के अनुरूप था। राज्य बनने के शुरुआती वर्षों में हिंदी को सरकारी दफ़्तरों और विद्यालयों में लागू करने पर बल दिया गया। परन्तु समय के साथ अंग्रेज़ी का प्रभाव फिर से बढ़ा और हिंदी का प्रयोग सीमित होता चला गया। यह विडंबना है कि जिस प्रदेश ने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में अंगीकार किया, वहाँ आज भी प्रशासनिक और न्यायिक कामकाज अंग्रेज़ी पर अधिक निर्भर है।
चुनौतियाँ स्पष्ट हैं। सबसे बड़ी चुनौती मानसिकता की ही है। अधिकारी और शिक्षित वर्ग अक्सर हिंदी को “कमज़ोर” या “दूसरी श्रेणी” की भाषा मानते हैं। अंग्रेज़ी में पत्र लिखना, भाषण देना या आदेश जारी करना प्रतिष्ठा का प्रतीक समझा जाता है। इस प्रवृत्ति ने हिंदी को प्रशासनिक रूप से पिछड़ा बना दिया है। दूसरी चुनौती तकनीकी शब्दावली की है। नई तकनीकों, डिजिटल गवर्नेंस और आईटी सेक्टर में हिंदी के लिए सरल और व्यवहारिक शब्द उपलब्ध कराना ज़रूरी है। तीसरी चुनौती है प्रशिक्षण और अभ्यास की—अधिकारी और कर्मचारी हिंदी में नोटिंग-ड्राफ्टिंग करने में सहज महसूस नहीं करते।
समाधान भी हमारे पास हैं। यदि हरियाणा के विश्वविद्यालय और प्रशिक्षण संस्थान हिंदी में प्रशासनिक लेखन और संचार पर विशेष पाठ्यक्रम चलाएँ तो युवा पीढ़ी को प्रारंभ से ही हिंदी में दक्ष बनाया जा सकता है। पंचायत स्तर से लेकर सचिवालय तक फाइलों और पत्राचार में हिंदी को अनिवार्य करने की ठोस नीति बने। तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास में हिंदी माध्यम को समान महत्व मिले। और सबसे बड़ी बात—हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। हिंदी हमारी ताक़त है, कमजोरी नहीं।
हिंदी दिवस पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हरियाणा जैसे हिंदीभाषी राज्य से ही हिंदी प्रशासन और जनसंपर्क की वास्तविक भाषा बने। यदि हम अपने गाँव, अपने विकास खंड, अपनी पंचायत और अपने ज़िला कार्यालयों में हिंदी को प्राथमिकता देंगे तो दिल्ली तक उसका असर पहुँचेगा।
हिंदी दिवस सिर्फ़ उत्सव का नहीं, गहन आत्म मंथन का दिन है। यह हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की जड़ें तभी मजबूत होंगी जब शासन की भाषा वही होगी जो जनता की भाषा है। हरियाणा को इस दिशा में उदाहरण बनना होगा। यही हिंदी दिवस का सही सम्मान होगा।