BILASPUR,20.04.24-समाज की सजगता कवि या लेखक के भावयोग और संस्कृति का संरक्षण कलाकर्म के सत्तत् सहयोग पर भी निर्भर करता है। जिला लोक संपर्क अधिकारी संजय सूद ने आज जिला भाषा अधिकारी कार्यालय बिलासपुर स्थित संस्कृति भवन मैं जिला भाषा कार्यालय द्वारा अयोजित मासिक गोष्ठी तथा अमर ज्योति सांस्कृतिक कला मंच घुमारवीं द्वारा आयोजित संस्कार एवम लोक गीत कार्यक्रम अयोजन के अवसर पर व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि समय-समय पर समाज को लेखक व कलाकारों ने अपने अनुभवों से मार्गदर्शन प्रदान किया है । उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से जहां स्थानीय लोगों को प्रतिष्ठा मिलती है वही विलुप्त होती संस्कृति के संरक्षण को ऊर्जा भी मिलती है।

अमर ज्योति कला मंच घुमारवीं के कलाकारों ने अमरावती के निर्देशन में संस्कार गीत, लोक गीत जिसमें बटना, घोड़ियां बधावा, सीटनिया शामिल है प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी। कलाकार बिमला शर्मा ,वीना , निम्मो जसवाल रीना ने अपनी मधुर आवाज में लोक गीतों को प्रस्तुत किया।
मासिक गोष्ठी कार्यक्रम के अंतर्गत भाषा विभाग द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी अपनी कविताओं से समाज की विभिन्न कुरीतियों और भ्रांतियों पर सजग चोट की वही व्यंग्य के माध्यम से अपनी बात कही।

कवि प्रदीप गुप्ता ने कवि सम्मेलन का शुभारंभ" लोग अब भी हमें चालाकी से लूटा करते हैं" कविता से किया। कर्मवीर कंडेरा ने अपनी नज़्म

वह हमें चाहे ऐसा जरूरी तो नहीं इश्क के बदले इश्क मिले यह कहीं लिखा तो नहीं। से अपना कलाम पेश किया वही सुरेंद्र मिन्हास ने बिलासपुर के पहाड़ों को छलनी करने के दर्द को अपनी रसीली आवाज और पहाड़ी बानगी मैं प्रस्तुत करते हुए कहा

" टिब्बे पहाड़ सारे कोरीते, बनिया सुरंगां सारे पहाड़ा,राडी मारदे सारे पहाड़, पीड़ा कन्ने मारदे
पहाड़ा,।
प्रोफेसर जय अनजान ने अपनी कविता
बिन मतलब के रिश्ते ढोने वालों से, किसी अपने के खो जाने से,
किसी के दिल को चोट पहुंचाने से
हां मैं डरता हूं ! कविता सुनाकर वाहवाही लूटी । पूनम वर्मा ने
सुनना पड़ेगा जीतोगे तो तारीफ, हारोगे तो तने
सुनना पड़ेगा।
सहना पड़ेगा
अपनों से अपमान
गैरों से मान ।

कविता प्रस्तुत कर नारी व्यथा के साथ साथ समाज की जिम्मेदारियां का भी बोध करवाया ।
अमरनाथ धीमान ने अपनी ग़ज़ल यह शहर भी कैसा जहां सुखचैन नहीं मिलता।
यहां लोग भी कैसे हैं जहां इन्हें अपना हमदर्द नहीं मिलता। प्रस्तुत की।

जीत राम सुमन में बिलासपुर के पुराने दर्द को नया रूप देते हुए अपनी टीस को सुरीले कंठ से यूं बयां किया कि भाखडे दा डैम लगगया, आई गया पानी। डूबी जंआदा सांडू मेरा साला बाद आऊंदा।
सुशील कुमार पुंडीर ने आज की आपाधापी भरी जिंदगी की पुराने दिनों से तुलना करते हुए अपनी कविता 31 मार्च को अपुन का रिजल्ट आता था।

खुशी के मारे सारे शहर का चक्कर लगाता था। प्रस्तुत कर बचपन की स्मृतियों को तरोताजा किया। अनीश ने पहाड़ी संस्कृति में त्योहार के दौरान बहू बेटियों के साथ बरते जाने वाले व्यवहारों की याद दिलाते हुए पहाड़ी कविता धीयां आइयां ,धीयांनियां आइयां प्रस्तुत कर लोक संस्कृति में बाटियों की अहमियत को उजागर किया।

शिवपाल गर्ग ने अपनी बुलंद आवाज और लेखनी के जोर को पुरजोर प्रस्तुत करते हुए कहा कि ढूंढते हो किस लिए मेरा वजूद मेरे निशान मैं हवा था एक दिन मैं फिर हवा हो जाऊंगा। पेश कर महफिल में अपनी कलम का मान बढाया।

चिंता देवी ने अपनी सुरीली आवाज में गणेश वंदना के साथ-साथ अत्यंत प्रभावशाली कविता भी प्रस्तुत की जिसे भरपूर सराहना मिली। रविंद्र नाथ बट्टा ने अपने अनुभवों के निचोड़ से लिखी कविता
किसी की याद या ख्वाब या शायद ख्वाब का भी रहेगा।

तुमसे मिलना और बिछड़ना मुझे तड़पता ही रहेगा पेश की। अमर ज्योति कला मंच घुमारवीं की अध्यक्ष अमरावती मोहिला ने अपनी हास्य कविता अकल बांटने लगे विधाता लंबी लगी कतारें तथा सुखराम आजाद ने दीदार को प्यास, आंखों में अश्कों की रवानी लेकर चले। प्रस्तुत की तथा बिलासपुर लेखक संघ के अध्यक्ष रविंद्र कुमार शर्मा ने आया बसोवा ओ माय नेडे तेडे,
मेरे भाउए रा सादा ना आया ए प्रस्तुत की। अरुण डोगरा रितु ने प्रभावपूर्ण मंच का संचालन कर संपूर्ण कार्यक्रम को जीवंत बनाते हुए वर्तमान चुनाव की स्थिति पर व्यंग्य करते हुए
आजकल बदला बदला सा नजर आ रहा है सब कुछ कविता प्रस्तुत कर श्रोताओं का दिल जीत लिया।
जिला लोक संपर्क अधिकारी संजय सूद ने भी कवि द्वारा कविता के माध्यम से निकलने वाले विचारों के प्रति किए गए श्रम को कविता के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब कवि का सेर खून जलता है,तब कहीं कविता का एक शब्द उपजता है।

कार्यक्रम में जिला भाषा अधिकारी रेवती सैनी भाषा संस्कृति विभाग के अन्य कर्मचारियों तथा बड़ी संख्या में दर्शन एवं श्रोता उपस्थित हुए।