करनाल, 09.01.22- महान सिख गुरु और दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों साहिबजादे फतेह सिंह और साहिबजादे जोरावर सिंह के अतुल्य बलिदान को नमन करते हुए उनकी याद में हर वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा स्वागत योग्य कदम है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। यह टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने की। वह प्रधानमंत्री के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।

डॉ. चौहान ने कहा कि अपने धर्म, संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए 5 और 7 वर्ष के बालक द्वारा दिया गया ऐसा सर्वोच्च बलिदान अत्यंत दुर्लभ है। दुनिया की किसी भी सभ्यता के इतिहास में ढूंढने पर भी ऐसा बलिदान देखने को नहीं मिलता। वीर बाल दिवस की घोषणा ऐसे महान बालकों की वीरता को सच्ची श्रद्धांजलि है। इससे हमारी आने वाली पीढ़ियां अपने गौरवशाली इतिहास जान पाएंगी। वीर बाल दिवस हमारे देश के युवाओं को धर्म, संस्कृति और अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए मर मिटने की प्रेरणा देगा।उन्होंने कहा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को यहीं प्रेरणा दी थी। गीता और गुरबानी के ज्ञान तत्व मूलतःएक ही हैं। गीता में भगवान कृष्ण ने भी धर्म की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का आह्वान किया था।

डॉ. चौहान ने महान सिख गुरुओं की शौर्य एवं बलिदान गाथा का जिक्र करते हुए कहा कि अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए महान सिख गुरुओं ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। गुरु तेग बहादुर द्वारा दिया गया बलिदान भी स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देना स्वीकार किया लेकिन जबरन इस्लाम धर्म कबूल न करने पर अडिग रहे।। ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष ने कहा कि गुरु तेग बहादुर के त्याग एवं बलिदान के कारण ही आज हम अपने सनातन धर्म का पालन कर पा रहे हैं। क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदू समाज को मिटाने की भरपूर कोशिशें की, लेकिन गुरु तेग बहादुर एवं गुरु गोविंद सिंह जैसे महान गुरुओं ने इस महान धर्म एवं संस्कृति को मिट जाने से बचाया। इसके लिए गुरु गोविंद सिंह को अपने चार साहिबजादों की कुर्बानी भी देनी पड़ी। यह माता गुजर कौर जी जैसी महान गुरु माता को याद करने का भी दिन है जिन्होंने देश और धर्म की खातिर अपने बच्चों की कुर्बानी दे दी और खुद भी सरहिंद के ठंडे बुर्ज में अपने प्राण त्याग दिए लेकिन इस्लाम स्वीकार नहीं किया। पूरा देश और हिंदू समाज महान सिख गुरु और उनके पूरे परिवार का ऋणी है।