इश्तिहारों के सहारे, करोड़ों की आय?
-कमलेश भारतीय
क्या सिर्फ आकर्षक इश्तिहारों के सहारे ही पतंजलि पीठ के स्वामी व योग गुरु बाबा रामदेव व उनके सहायक बालकृष्ण ने करोड़ों रुपये की दवाइयां बेच डालीं? अब सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है उत्तराखंड सरकार से कि उन मासूमों का क्या, जिन्होंने इस भरोसे में दवायें लीं कि ये हमें बीमारियों से ठीक कर देंगे । हमें उन एफएमसीजी कंपनियों की चिंता है जो लुभावनी तस्वीरें दिखाती हैं और लोग समस्याओं से जूझते हैं । हम राज्य सरकार को छूट नहीं देंगे । समाज में बड़े पैमाने पर यह संदेश जाना चाहिए कि कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं होना चाहिए । सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश अच्छी तरह से दे भी दिया बाबा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण की माफी को ठुकरा कर और कहा कि ये दोनों नतीजे भुगतने को तैयार रहें क्योंकि इन्होंने तीन तीन बार कोर्ट का आदेश नहीं माना । हद तो यह हो गयी कि 30 मार्च को पेश किये गये हलफनामे में हवाई टिकट 31 मार्च के लगा दिये गये । हालांकि बाबा रामदेव व बालकृष्ण के वकील जो नामी वकील हैं और देश में उनका नाम है यानी मुकुल रोहतगी ने पैरवी करते कहा कि कोर्ट चाहे तो बाबा रामदेव व बालकृष्ण सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को तैयार हैं लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते कहा कि हम आपको इसकी छूट नहीं दे सकते लेकिन कोर्ट में माफीनामा देने से पहले ये सार्वजनिक कैसे कर दिया ? यह माफीनामा कोर्ट को दिया था या पब्लिक को ? इस तरह हर कदम पर बाबा रामदेव व बालकृष्ण को फटकार लगती गयी । जहां तक कि उत्तराखंड के हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर और लाइसेंसिंग अधिकारी पर सरकार ने क्या कार्यवाही की, यह भी पूछा कोर्ट ने और यह भी याद दिलाया कि छह बार ये इंस्पेक्टर आंखें मूंदे क्यों रहे और दिव्य फार्मेसी पर कार्यवाही करने की हिम्मत न जुटा सके, यहां तक कि रिपोर्ट भी न बना सके !
यह सारा प्रकरण यह सचमुच याद दिलाता है कि कोई भी कोर्ट से ऊपर नहीं है, फिर चाहे वह सत्ता के कितना भी करीब क्यों न हो या फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान अरविंद केजरीवाल ही क्यों न हो ! कोर्ट की देवी अपनी आंखों पर इसीलिये पट्टी बांधे रखती है कि किसी को छोटे या बड़े के रूप में न देखकर आरोपी के तौर पर ही फैसला हो और अब जो हो रहा है, वह यही हो रहा है कि आप होंगे योग गुरु, आप होंगे टीवी स्टार लेकिन झूठे इश्तिहारों के बल पर दवाइयां बेचकर मासूम लोगों को ठग कर करोड़ों रुपये की टर्न ओवर‌ के सपने नहीं देख सकते ! ऐसे ही कितने‌ विज्ञापन ये बिल्डिंग कम्पनियों के आते हैं और एक बार एक क्रिकेटर ने ऐसी किसी कंपनी का विज्ञापन कर दिया था तो उन्हें भी कोर्ट में तलब किया गया था । ऐसे ही हमारे सितारे और क्रिकेटर‌ पान मसालों या शराब के विज्ञापन करते दिखाई देते हैं और यहां तक कि कहते हैं कि क्या गुजरेगी, जब मैं, तुम और बैगपाइपर होंगे ! सिगरेट और शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लिखा होने के बावजूद इसकी परवाह कौन करता है ?
खैर, बाबा रामदेव और बालकृष्ण को सही फटकार लगा कर सुप्रीम कोर्ट ने दूसरों को भी चेतावनी दे दी है कि अब खैर नहीं! बचना ऐ इश्तिहारों के बल पर मासूमों को ठगने वालो !
बच के रहना रे बाबा! इन बाबाओं और दवाओं से !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।
9416047075
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राजनीति में क्या खोया, क्या पाया?
-कमलेश भारतीय
राजनीति में किसने क्या खोया और क्या पाया? यह सवाल मन‌ में उठा, जब सिरसा से सांसद व पूर्व‌आयकर अधिकारी सुनीता दुग्गल ने सिरसा से इस बार भाजपा द्वारा टिकट काटे जाने पर बहुत दुखी मन से कहा कि 2014 मे अच्छी भली आयकर अधिकारी की नौकरी गयी और अब सन् 2024 में मेरी सिरसा लोकसभा क्षेत्र से टिकट ही कट गयी ! पहले नौकरी खोयी और अब दावेदारी भी न रही । उन्होंने बड़े दुखी मन से कहा कि ऐसा लग रहा है कि आप मेरी फेयरवेल पार्टी में बैठे हो ! जब मैं तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से पार्टी ज्वाइन करने के बाद मिली तब उन्होंने कहा कि आप तो अफसर हो, राजनीति में कैसे आ गयीं? राजनीति में अक्सर ऐसे भी होता है कि कभी कभी टिकट के साथ नौकरी भी चली जाती है । वही बात मेरे साथ बनी !
सुनीता दुग्गल हिसार की बेटी हैं और काॅलेज के दिनों बहुत अच्छी एथलीट रही हैं और चाहे राजनीति हो या जीवन धैर्य नहीं खोना चाहिए और हार को भी स्वीकारना पड़ता है । शायद सुनीता दुग्गल का दुख इसलिए भी ज्यादा है कि जिस अशोक तंवर को हरा कर वे सांसद चुनी गयी थीं, उन्हीं को भाजपा में एडजस्ट करने के लिए सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर अशोक तंवर को दे दिया गया ! सुनीता दुग्गल कोई पहली ऐसी सांसद या राजनेता नहीं, जिसने राजनीति में नौकरी, करियर या टिकट नहीं खोया ! सबसे पहले बिग बी और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को ही लो । अपने बालसखा राजीव गाँधी की राजनीति मे मदद करने आये तो अच्छा भला फिल्मी करियर दांव पर लगा बैठे और बोफोर्स घोटाले की बात आते ही राजनीति से ऐसे भागे कि फिर ‌नहीं लौटे ! गोबिंदा ने भी अपने फिल्मी करियर को दांव पर लगाया, कांग्रेस टिकट पर सांसद भी बने लेकिन राजनीति रास न आई और फिल्मी करियर भी डूब गया । वैसे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी आयकर अधिकारी ही थे, सफल भी रहे, तीन तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने लेकिन अब शराब कांड में तिहाड़ जेल में रामायण, महाभारत का पाठ कर रहे हैं, यही धार्मिक पुस्तकें उन्होंने जेल प्रशासन से मा़गी थीं । करियर क्या, बनाया और फिर एकबार तो जीरो पर ही आ गया ! कितने ऐसे उदाहरण दिये जा सकते हैं, जिन्होंने राजनीति से पाया कम और खोया ज्यादा ! गौतम गंभीर ने क्रिकेट करियर बचा लिया। टिकट कटते ही कोलकाता नाइट राइडर्स को संभालने जा पहुंचे । कोई फर्क नहीं पड़ने दिया अपने चेहरे पर ! हंसराज हंस का टिकट भी कट गया ! किरण खेर का टिकट कटा ।अपने हिसार के आयुक्त रहे डाॅ युद्धवीर ख्यालिया , अच्छी भली अफसरी छोड़ कर केजरीवाल के पीछे लग लिये, हिसार लोकसभा क्षेत्र का चुनाव लड़े, बुरी तरह हारे और अब उस चुनाव और राजनीति की बात भी नहीं करना चाहते। कहते हैं कि यह एक बुरे सपने जैसा था, याद न दिलाओ और न मैं इसे याद करना चाहता !
वही गाने की पंक्तियां याद आ रही हैं :
भूली हुई यादो
मुझे इतना न सताओ
अब चैन से रहने दो
मेरे पास न आओ !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।
9416947075