HISAR, 06.04.24-आखिरकार, सचमुच वह घड़ी आ ही गयी, जब किसान नेताओं से अपने सवालों के सीधे जवाब मांगने पर विरोध व प्रदर्शन पर उतर‌ आये हैं । यह बहुत सुखद स्थिति तो नहीं लेकिन ऐसा लगता है जैसे किसान नेताओ से उनके काम काज, व्यवहार का हिसाब मांगने निकल आये हैं । जैसे किसान इसी दिन का इंतज़ार कर रहे थे । किसान आंदोलन की आंच अब नेताओ तक पहुँचने लगी है क्योंकि अब सीधे आमना सामना करने का वक्त आ गया लगता है । जवाब दो, हिसाब दो वाली स्थिति बन गयी लगती है।
किसानों के सवालों से सबसे पहले सामना करना पड़ा हिसार से भाजपा प्रत्याशी चौ रणजीत सिंह को श्यामसुख गांव में और उन्हें बीच में ही अपना प्रचार छोड़कर अगले गांव निकलने पर विवश होना पड़ा । इससे संबधित वीडियो भी वायरल हुआ, जिससे शक की कोई गुंजाइश न रही । पहले ही चौ रणजीत सिंह ब्राह्मणों पर दिये बयान पर माफी मांग रहे हैं, ऊपर से किसान भी आ गये । ये तो सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली बात हो गयी। अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन हुए नहीं भाजपा ज्वाइन कर, टिकट लिए कि कभी ब्राह्मण तो कभी किसान इनके प्रचार पर स्पीड ब्रेकर बन कर आ रहे हैं । अभी तक इनका विधायक के रूप में इस्तीफा भी मंजूर नहीं हुआ। यह क्या पेंच है? जबकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का इस्तीफा तो इधर दिया, उधर मंजूर‌ हो गया तो चौ रणजीत सिंह के इस्तीफे को मंजूर करने में क्या रोड़ा अटक रहा है? ऊपर से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर रात बिरात हिसार के लोगों के घर जाकर भाजपा प्रत्याशी के बारे में फीडबैक ले रहे हैं। हद हो गयी भाई ! टिकट पहले थमा दी और फीडबैक बाद में ले रहे हैं । शादी पहले तय कर दी और जन्मकुंडली बाद में मिला रहे हैं। यह क्या माजरा है? दाल में कुछ काला है या लोगों को ही लगने लगा है?
किसानों के गुस्से का शिकार पूर्व‌ उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी नारनौंद के गांवों में प्रचार के दौरान हुए और उन्होंने जब किसानों से कहा कि आप इस तरह रास्ता नहीं रोक सकते, तब किसानों ने याद दिलाया कि आपने हमें दिल्ली जाने से रोका था कि नहीं? यह बड़ी ही दुखद स्थिति है ! कोसली गांव में भाजपा प्रत्याशी अरविंद शर्मा को भी विरोध का सामना करना पड़ा । भाजपा नेताओ और प्रत्याशियों के विरोध से दस की दस सीट जीतने का दावा हवा हवाई ही लगने लगा है ।
इसके जवाब में मुख्यमंत्री नायब सिंह कहते हैं कि यह तरीका गलत है, हम आपकी समस्याओं को सुलझायेंगे पर आप धैर्य रखें। असल में मुख्यमंत्री सिरसा से भाजपा प्रत्याशी अशोक तंवर के समर्थन में प्रचार के लिए आये थे और विरोध कर रहे किसानों को चार घंटे तक हिरासत में रखना पड़ा था । ‌यानी असलियत मुख्यमंत्री के सामने भी आ ही गयी ! तभी कहा कि धैर्य‌‌ ‌रखें ।
कितना धैर्य? कब तक? ओलावृष्टि और फसलों के खराब होने पर साल साल भर कोई मुआवजा नहीं मिलता । सचिवालयों के बाहर धरनों पर रात दिन बैठे रहने‌ वाले और कितना धैर्य रखें?
किसान तो अब दुष्यंत कुमार‌ के शब्दों में जैसे यही कहते दिख रहे हैं :
यह सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।
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