CHANDIGARH,09.05.23-प्राचीन कला केन्द्र द्वारा 284 वीं मासिक बैठक में नासिक से आई वैदेही कुलकर्णी द्वारा कुचीपुड़ी नृत्य पेश किया गया । वैदेही ने 4 वर्ष की अल्पायु में नृत्य सीखना शुरू किया और बचपन से ही नृत्य में इनकी गहरी रूचि थी । इन्होंने पद्मभूषण गुरू चिन्ना सत्यम के अलावा गुरू वेम्पति रवि शंकर और श्रीमती श्रीमई वेम्पति से नृत्य की शिक्षा प्राप्त की । कुचीपुड़ी एवं भरतनाट्यम नृत्य में महारथ रखने वाली वैदेही ने बहुत से कार्यक्रमों में अपने नृत्य से खूब वाहवाही बटोरी ।

आज की 284 वीं बैठक का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में सायं 6 बजे से किया गया । कार्यक्रम में वैदेही ने सबसे पहले नतेशा कौतुवम प्रस्तुत किया । जिसमें वैदेही ने भगवान शिव के आलौकिक रूप को नृत्य के माध्यम से पेश किया और इसके पश्चात भगवान शिव की स्तुति पेश की । इसके उपरांत पदमावती श्रृंगार प्रस्तुत किया जिसमें देवी पदमावती ने अपने भगवान श्रीनिवास के साथ बिताई खूबसूरत रात का चित्रण नृत्य के माध्यम से किया । वैदेही की भाव भंगिमाएं एवं पैरों की चालों को देखकर ही उनकी नृत्य प्रतिभा का पता चलता है। सजग नृत्य और खूबसूरत भाव वैदेही के नृत्य के विशेष गुण हैं । इसके उपरांत वैदेही ने कुचीपुड़ी नृत्य का एक रूप जवाली प्रस्तुत किया । जिसमें नायिका द्वारा नायक से शिकायत करते हुए एक खूबसूरत भाव प्रदर्शन है जिसमें नायिका नायक से अपनी जलन भाव का प्रदर्शन करती है ।
कार्यक्रम के अंत में वैदेही ने मरकाटा मणीमाया रचना पेश की । जिसमें भगवान कृष्ण की सुंदरता और महिमा का बखान किया गया और नायिका श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए उनकी सुंदरता का बखान करती है । इस प्रस्तुति का समापन पीतल की थाली पर नृत्य करते हुए होता है जो कि कुचीपुड़ी नृत्य की एक खास विशेषता है ।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर एवं रजिस्ट्रार डॉ. शोभा कौसर द्वारा पुष्प,मोमेंटो और उतरीया भेंट किया गया ।