HISAR,31.05.23-एक बहुत प्यारी गजल की पंक्ति है :
तेरे खत मैं गंगा में बहा आया हूं ! (रहबर )
इसे जगजीत सिंह ने बहुत दर्दभरी आवाज में गाया है । अब इतने ही दर्द में भर कर हमारे पहलवान गंगा में अपने मेडल बहाने हरिद्वार चले गये कि शायद इससे ही कोई शर्म अगर बच रही हो तो आ जाये । राजा को तो शर्म नहीं आई लेकिन जिस घाट पर ये मेडल बहाने गये थे वहां के पंडों ने जरूर विरोध किया कि गंगा मेडल बहाने के लिये नहीं है । आप यहां मेडल नहीं विसर्जित कर सकते । फिर ये दूसरे घाट पर गये और इनके मेडल नरेश टिकैत ने अपने पास रख कर पांच दिन का समय मांगा जिस पर ये पहलवान सहमत हो गये ।
यह नौबत क्यों आई ? जब जंतर मंतर से ये लोग नये संसद भवन की ओर कूच करने लगे और पुलिस ने इनके साथ बर्बरता की , इन्हे घसीटा सड़कों पर और तिरंगा इनके हाथ में था जिसे वे थामे रहे ! कल जो तिरंगा थामने पर हमारे गर्व और गौरव के पात्र होते थे , आज वही सितारे जमीन पर थे । अपमानित । बेआबरू । सारे
खेल रत्न और पद्मश्री जैसे धूल धूसरित हो गये इनके साथ !
कहा जा रहा है कि पहलवान राजनीति के शिकार हो गये । राजनीति भी तब शुरू हुई जब सत्ताधारियों ने इनकी मांग अनसुनी ही नहीं अनदेखी भी कर दी । कोई नहीं आया सरकार की ओर से इनकी व्यथा कथा सुनने । सबके सब जैसे बहरे और अंधे हो गये । कुछ दिखा नहीं , कुछ सुना नहीं । फिर पहलवान कहां जायें ? बेटियों कहां जायें फरियाद लेकर ? आखिर ये कोई मामूली बेटियों तो नहीं । देश का गौरव हैं , मान हैं , हमारा स्वाभिमान हैं ! फिर इनको पदक गंगा में बहाने की नौबत क्यों आई ? जब बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि एक मेडल की कीमत पंद्रह रुपये है । वाह ! पंद्रह पंद्रह साल जिन्होंने मिट्टी में , अखाड़े में पसीना बहाकर ये मेडल जीते , उनकी कीमत बस पंद्रह रुपये ! वह भी कुश्ती संघ के अध्यक्ष की नजर में ? कितनी शर्म की बात है ! यह बयानबाजी ! इससे किसका सीना बढ़कर या किसका हौसला बढ़कर छप्पन इंच का हो जायेगा ? नहीं शर्म से डूब मरने की बात है । कैसे प्रोत्साहित करोगे कि खेलोगे, कूदोगे तो बनोगे नबाब? नहीं कर सकोगे न प्रोत्साहित ! कैसे अभिभावक अपनी बेटियों को खेल के मैदान में भेजेंगे ? पी टी उषा ने आकर अपने बयान के लिये माफी मांगी जरूर थी लेकिन वह सिर्फ एक औपचारिकता थी । क्या देश की छवि रोज धूमिल नहीं हो रही ? सानिया मिर्जा , नीरज चोपड़ा तक ने इस घटनाक्रम पर दुख व्यक्त किया लेकिन सरकार है कि सुनती नहीं ! देखती नहीं ! कौन है मौनी बाबा? क्या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या कोई और ? बहुत अच्छे दृश्य तो नहीं हैं गंगा किनारे बैठे पहलवानों के ! हे गंगा मां अपने बेटे से पूछ तो सही कि यह सब क्या हो रहा है ! एक बार फिर बुला ले बेटे को और पूछ !
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं
मैं इन नजारों का अंधा तमाशवीन नहीं ! (दुष्यंत कुमार )
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।
9416047075