चंडीगढ़/पंचकूला 10 जनवरी निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कपूरथला के गुरु नानक स्टेडियम में आयोजित भव्य निरंकारी संत समागम के अवसर पर हजारों भक्तों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जब इन्सान को इस प्रभु परमात्मा की जानकारी हो जाती है, तो एक दूसरों के प्रति भेदभाव मिट जाते है, हृदय विशाल हो जाता है और समाज के सभी लोग उसे अपने ही नज़र आने लगते हैं। हमारा इस संसार में आने का ये ही उद्देश्य इस परमात्मा को पहचान कर जीवन को सफल करे ओर भक्ति को ही मुख्य उद्देश्य बनाए , तब ही मन की अवस्था आनंदमय बनती है। समाज का जो वातावरण है कि यदि हम सबको सत्संग में आने को कहें तो उनका मन सत्संग में आने को राजी नहीं होता, परन्तु मन माया की इच्छा करता है चाहत कि हमारा शरीर स्वस्थ रखे, अधिक से अधिक धन मिले, सन्तान का वरदान मिले,अच्छे घर हों, कारें हों। इन सब तुच्छ विचारों को सोच-सोच कर मनुष्य जीवन में भ्रमित हो जाता है।उन्होंने आगे एक उदाहरण देते हुए फरमाया कि जैसे महात्मा गौतम बुद्ध जी ने अपने भक्तों को ब्रह्म ज्ञान की जानकारी दी थी, उनके एक भक्त ने कहा कि जिस तरह महात्मा जी आप ने हम पर कृपा की है, बाकी दुनिया को भी इस भगवान की जानकारी दे कर मुक्त कर दे। तब महात्मा बुद्ध जी ने कहा कि मैं ब्रह्मज्ञान देने को तैयार हूं लेकिन लोग इस दात को लेने के लिए त्यार नहीं हैं। उन्होंने उस व्यक्ति को क्षेत्र के लोगों के पास जाकर यह पता लगाने के लिए भेजा कि क्या उन्हें इस जीवन में मोक्ष की आवश्यकता है? तब वे समाज में जाकर सभी व्यक्ति से मिलते ओर पूछते है के किस किस को मुक्ति चाहिए, परंतु सभी ने धन, संपत्ति, घर, संतान आदि की कामना की, किसी ने भी भगवान के ज्ञान और मोक्ष की इच्छा व्यक्त नहीं की। इसी प्रकार संसार आज भी इसी माया में उलझा हुआ है और इस प्रभु परमात्मा को भूल कर सांसारिक पदार्थों में उलझा हुआ है। हर कोई जो बचपन या जवानी की अवस्था में होता है तब वह सोचता है कि अभी मौज करने का समय है, हम वृद्धावस्था में जाकर इस परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

जबकि पूरन गुरसिख पहले ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर सकून से जीवन व्यतीत करते हुए दास भाव से, सेवा भाव से, सभी को समान समझकर शांतिपूर्वक जीवन में विचरण करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वे भेदभाव नहीं करते, दिखावा नहीं करते, चालाकी नहीं करते, स्वयं को ईश्वर से जोड़े रखते हैं और निरन्तर निरकार से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। यह निरंकार न कभी घटता है, बढ़ता है, न बदलता है, स्थिर रहता है, जब यह समझ में आ जाता है तो मनुष्य जान लेता है कि शरीर में सुख-दुःख आते रहते हैं, गृहस्थ जीवन में कोई भी कष्ट हो तो गुरसिख उसे भी केवल प्रसाद समझकर अपना जीवन जीते हैं, वे हमेशा निरंकार की रजा मानते हैं। उन्होंने एक उदाहरण के माध्यम से समझाया कि जैसे मछली को केवल पानी में ही सांस लेना, तैरना, खाना-पीना अच्छा लगता है। इसी तरह गुरसिख जानते हैं कि सब काम प्रभू परमात्मा के अंदर ही हो रहे हैं। वे ईश्वर से जुड़ कर मानवीय गुणों से भरपूर जीवन जीते हैं।मन में परमात्मा का वास होने के कारण हम सेवा, सिमरन ओर सत्संग करते हैं तो मन भी इस निरंकार से जुड़ जाता है। सत्संग करने से हमारे मन में सकारात्मक भाव आते हैं। कोई यह न सोचे कि ये मेरे परिचित हैं, परिवार के सदस्य हैं, केवल इनकी सेवा और सम्मान करना है, लेकिन संत भक्त को तो सभी अपने नज़र आते हैं, वह सबको अपना मानते हैं और सबकी दिल से सेवा सरकार करते हैं। आपसी सहयोग, प्रेम, विनम्रता और सहनशीलता से अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

इस अवसर पर गुलशन आहूजा जी जोनल इंचार्ज कपूरथला ने अपनी और संगत की तरफ से सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता रमित जी के कपूरथला आगमन पर आभार और धन्यवाद किया। उन्होंने स्थानीय नागरिक प्रशासन, पुलिस प्रशासन और क्षेत्र के विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों को उनके पूर्ण समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।