चण्डीगढ़, 17.04.24- : श्री राम का इतिहास आज्ञा पालन करने का था। वे आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते थे। इसी कारण श्री राम आज लोगों की हृदय में बसे हुए हैं।

महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने कैकई को वीरांगना कहा है ऐसा त्याग करने वाली स्त्री पैदा नहीं हुई है। उपरोक्त शब्द आर्य समाज सेक्टर 19 सी चण्डीगढ़ रामनवमी पर्व के दौरान सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से पधारे वैदिक विद्वान आचार्य शिवकुमार शास्त्री ने कहे। उन्होंने कहा कि कैकई को पता था कि रावण जैसे दुष्ट राक्षस धरती पर बढ़ रहे हैं। कैकई श्री राम से स्नेह करती थी। जब भरत ने चित्रकूट में राम जी को अयोध्या वापस जाने के लिए कहा तो श्री राम ने कहा कि माता-पिता का आदेश उनके लिए सर्वोपरि है। यह ऋषियों का भी संदेश है। संस्कृति को तार-तार करने वालों को खत्म करना अनिवार्य हो गया था। श्री राम जी केवल चरण वंदना करना ही नहीं जानते बल्कि माता-पिता के आचरण बंदन को भी भली भांति जानते हैं। वे वचनों के अनुरागी हैं। जब वे माता कौशल्या से मिलते हैं तो कहते हैं कि मेरे अनुज भरत को राज्य मिला है जबकि मुझे वन राज्य प्राप्त हुआ है। जब राम वन की ओर गमन करते हैं तो भरत माता कैकई के कारण खुद को दोषी समझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि राम जी के चरित्र को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नित्य कर्म न करने से पाप लगता है। जो मनुष्य ईश्वर से दूर होता है वह परेशान होगा। दुख दूर करने का साधन भीतर ही है। शरीर में 209 पहाड़ हैं। उसके जितने भी जोड़ है वे दिखाई नहीं देते इसलिए वे बेजोड़ हैं। रचना करने वाले ईश्वर ने इसे अंदर से रचा है इसलिए अंदर बैठकर ही शांति प्राप्त हो सकती है। उन्होंने कहा कि शरीर के अंदर तीनों नदियों का संगम है। इसी में गंगा, यमुना और गुप्त सरस्वती का संगम है। उन्होंने कहा कि शरीर के अंदर ही गुफा है यह गुफा हृदय के पास कमल की आकृति जैसा खाली स्थान है वहां परमपिता परमात्मा विराजमान हैं। छिपे हुए को जाने के लिए शांत होना पड़ेगा। महर्षि दयानंद सरस्वती ने ब्रह्म यज्ञ को ही मानसिक दुखों से छूटने का तरीका बताया है। पितृ यज्ञ करने से परिवार में सुख शांति होगी। सुख स्वर्ग है और दुख नर्क है। जीते जी माता-पिता की सेवा करना ही श्रद्धा है। कार्यक्रम पर्व बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास से पंच कुंडीय महायज्ञ के साथ सम्पन्न हुआ। भजनों की सुमधुर प्रस्तुति आर्य जगत के प्रसिद्ध भजनोपदेशक पण्डित उपेन्द्र आर्य ने की। उन्होंने ऋषियों का जमाना किधर गया जी, मात-पिता तुझे बंधन, किस्मत से तुम्हे पाया, राम जा रहा है आदि भजनों की मनमोहक प्रस्तुति से सबको आत्म विभोर कर दिया। विशिष्ट वक्ता आचार्य नरेन्द्र देव ने बहुत सुन्दर वक्तव्य प्रस्तुत किया। मीना सेठी एवं स्थानीय कार्यकर्ताओं ने भी भजन प्रस्तुत किए।

इस मौके पर डा. अजय गुप्ता, अनिल कुमार त्यागी, बृज मोहन शर्मा, शुभम सेठी, प्रकाश यादव, डॉ. विनोद शर्मा, अशोक आर्य, प्रकाश चंद्र शर्मा, रीता चावला, प्रभा पुरी, प्रोमिला भसीन, सुरेन्द्र कुमार सहित चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली की आर्य समाजों से पदाधिकारी, सदस्य एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे।