CHANDIGARH,26.03.22-संगीत और नृत्य एक ऐसा माध्यम है जो विभिन्न संस्कृतियों को जहाँ एक साथ जोड़ता है वहीं इससे जुड़े कलाकारों और रसिकजनों को भी आनन्द प्रदान करता है और इसी सांस्कृतिक अंचलों को जोड़ने का अद्भुत कार्य कर रहा है टैगोर थिएटर में चल रहा प्राचीन कला केंद्र द्वारा आयोजित 51वां भास्कर राव नृत्य-संगीत सम्मेलन। भरे हुए सभागार में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त तथा प्राचीन कला केंद की रजिस्ट्रार गुरु माँ डॉ. शोभा कौसर, प्राचीन कला केंद्र के सचिव सजल कौसर, , निदेशक, प्रोजेक्ट्स एंड डेवलपमेंट श्री आशुतोष महाजन कई गण माननीय अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति में शनिवार की शाम कुछ ख़ास इसलिए भी थी क्योंकि कश्मीर की वादियों,पहाड़ों की याद दिलाने वाले साज़ संतूर का पर्यायवाची बने पद्मविभूषण से सम्मानित पं. शिवकुमार शर्मा के सुपुत्र और शिष्य पं. राहुल शर्मा और साथ ही दक्षिण भारत की झलक लिए डॉ पद्मजा सुरेश अपनी बेहतरीन भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुति देने यहाँ पहुंचे हुए थे !

आज के कलाकारों में से एक थे, राहुल शर्मा जो हमारी पीढ़ी के बेहतरीन संतूर वादकों में से एक हैं। एक संगीतज्ञ परिवार में जन्मे राहुल का कलाकार बनना तय था। उनके पिता प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा और उनके दादा उमा दत्त शर्मा, एक बहुमुखी हिंदुस्तानी गायक और तबला वादक हैं। राहुल ने कई अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ सहयोग किया है और अपने कई गीतों और एल्बमों की रचना की है। एक कलाकार होने के अलावा, उन्हें एक स्टाइलिश संगीत व्यक्तित्व के रूप में भी जाना जाता है, जो उनकी पत्नी बरखा शर्मा का सहारा है।

दूसरी ओर प्रतिष्ठित भरतनाट्यम नर्तकी डॉ. पद्मजा सुरेश एक ऐसी कलाकार और शोधकर्ता हैं जो दिग्गज गुरु के. कल्याण सुंदरम और पिता श्री चक्यार राजन द्वारा प्रशिक्षित हैं । उन्होंने वाणिज्य, कानून में डिग्री, कोरियोग्राफी में डिप्लोमा, दर्शनशास्त्र में परास्नातक और मैसूर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने प्रमुख नृत्य समारोहों में व्यापक रूप से प्रदर्शन किया है और कम विशेषाधिकार प्राप्त बच्चों को पढ़ाने के उनके प्रयासों के लिए डॉ कलाम द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया था। पद्मजा ने 32 से अधिक देशों में व्यापक संगीत कार्यक्रमों के अलावा ICCR का प्रतिनिधित्व किया है।

कार्यक्रम की शुरुआत राहुल शर्मा द्वारा संतूर वादन से हुई। उन्होंने पारम्परिक आलाप के माध्यम से मधुर राग "हंसधवानी" को जोड़ और झाले से विस्तार रूप दिया उपरांत कुछ सुंदर रचनाओं को प्रस्तुत करके इन्होने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी । पं. राहुल शर्मा ने अपने कार्यक्रम का समापन मनोरम मिश्र पहाड़ी लोक धुन के साथ किया। उनका साथ देने के लिए प्रसिद्ध तबला वादक पं. मुकुंदराज देव ने बखूबी संगत करके चार चाँद लगा दिए ।

इसके बाद प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्मजा सुरेश ने मंच संभाला। इन्होने ने अपनी पहली प्रस्तुति में भगवान गणेश और देवी कामाक्षी की स्तुति में कावुथुवम पेश की कावुथुवम नृत्य के तंजौर स्कूल की एक विशेषता है । इस खूबसूरत नृत्य प्रस्तुति के बाद वर्णम पेश किया गया जिसमें देवी मीनाक्षी का जन्म का वर्णन किया गया । वर्णम की विशेषता संगीत की गति भिन्नताओं में है। इसके बाद उन्होंने जयदेव रचित अद्वितीय गीत गोविंद द्वारा राधिका कृष्ण को प्रस्तुत किया। इसके पश्चात उन्होंने दुर्गा सप्तपति के छंदों के माध्यम से देवी चंडी को नृत्य के खूबसूरत चित्रण द्वारा प्रस्तुत किया। उन्होंने कांची मठ के महान संत शंकराचार्य द्वारा रचित मिथ्रीम बजाथा के साथ समापन किया, जो विश्व के लिए शांति और खुशी का आह्वान है। उनके बेहतरीन संगतकारों में गायन पर बालासुब्रमण्यम शर्मा, नट्टुवंगम पर श्री आर केशवन, मृदंगम पर श्रीहरि रंगास्वामी और बांसुरी पर जयराम के.एस. थे।

कल सम्मलेन के समापन दिवस पर पंडित योगेश समसी का एकल तबला वादन पदम्भूषण पंडित विश्वमोहन भट्ट जी द्वारा सुखदायक मोहनवीणा वादन प्रस्तुत किया जायेगा।