CHANDIGARH,23.03.22-प्राचीन कला केन्द्र द्वारा टैगोर थिएटर में आयोजित किये जा रहे 50वें भास्कर राव नृत्य एवं संगीत सम्मेलन के तीसरे दिन केन्द्र के चैयरमैन श्री एस.के.मोंगा,रजिस्ट्रार डॉ.शोभा कौसर एवं सचिव श्री सजल कौसर मौजूद रहे। आज के कार्यक्रम में जहां एक ओर सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका तूलिका घोष ने अपने गायन से सबको मंत्रमुग्ध किया वहीं मशहूर सितार वादक पंडित पार्था बोस ने सितार की मधुर धुनों से खूब तालियां बटोरी।

पद्मभूषण तबला वादक पंडित निखिल घोष की पुत्री तूलिका इस प्रतिष्ठित संगीतकारों के परिवार की चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहीं है। उनके बड़े चाचा प्रसिद्ध पन्नालाल घोष थे, जिन्हें 'हिंदुस्तानी शास्त्रीय बांसुरी के पिता' के रूप में भी जाना जाता है। उनके दादा अक्षय कुमार घोष सेनिया घराने के एक विद्वान सीतारिया और उनके परदादा श्री हरकुमार घोष, एक ध्रुपद गायक और पखवाज वादक थे। गरिमा, तीव्र मधुरता और एक रमणीय मंच उपस्थिति, तुलिका घोष की कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं। तुलिका के गायन में आगरा, ग्वालियर, सहसवान, किराना, पटियाला और बनारस परंपराओं के बेहतरीन तत्व मिलते हैं।

आज के दूसरे कलाकार पार्थ बोस को शास्त्रीय भारतीय संगीत की दुनिया में एक उभरते हुए सितारे के रूप में देखा जाता है । 6 साल से शुरू होकर, पार्थ ने मैहर घराने के पंडित मनोज शंकर के संरक्षण में गुरु शिष्य परम्परा द्वारा गहन प्रशिक्षण लिया। शैक्षिक गतिविधियों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा को बखूबी प्रदर्शित किया और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इन्होने 11 साल की उम्र में पहली बार ऑल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुति पेश की और अपनी किशोरावस्था में संगीत समारोहों और टेलीविजन पर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे होनहार युवा एक परिपक्व संगीतकार के रूप में विकसित हुआ। पार्था को युवा पीढ़ी के एक प्रमुख सितार वादक के रूप में जाना जाता है।

आज के कार्यक्रम की शुरुआत तूलिका घोष ने एक सुंदर राग श्री से की। पारम्परिक आलाप के पश्चात इन्होने झप ताल मध्य लय की बंदिश "दरस दिखा मोरे कान्हा " पेश करके एक खूबसूरत माहौल बना दिया। इसके उपरांत इन्होने हरि के चरन कमल बंदिश प्रस्तुत करके साथ ही द्रुत तीन ताल के तराने से दर्शकों की खूब तालिया बटोरी। तूलिका ने कार्यक्रम का खूबसूरत समापन एक बेहद भावपूर्ण भजन "बनवारी की सुरतिया बिसरत नाही " से किया जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।

आज की दूसरी प्रस्तुति में कोलकाता के पार्था बोस ने अपने सितार की मधुर धुनों से संगीत प्रेमियों को मंत्र मुग्ध कर दिया। इन्होने राग बिहाग में निबद्ध आलाप से शरुआत की और जोड़ झाले से राग की ख़ूबसूरती को मधुर धुनों द्वारा प्रस्तुत किया। इसके उपरांत इन्होने ने होली के त्यौहार के अनुरूप राग काफी में विलम्बित और मध्य लय की खूबसूरत गतें पेश की। कार्यक्रम के अंत में इन्होने एक धुन से समापन किया।

कार्यक्रम के अंत में केंद्र के कार्यक्रम के समापन पर केन्द्र की रजिस्ट्रार डॉ.शोभा कौसर,एवं सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को पुष्प एवं स्मृति चिन्ह देकर कर सम्मानित किया। डॉ.समीरा कौसर ने बखूबी मंच संभाला एवं बताया कि सम्मेलन के चौथे दिन यानि कल पंडित शौनक अभिषेकी के शास्त्रीय गायन और विदुषी वैजंती काशी के समूह द्वारा कुचिपुड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी।