CHANDIGARH, 22.03.22-अखिल भारतीय भास्कर राव सम्मलेन के दूसरे दिन आज यहां टैगोर थिएटर में शहर के जाने माने शास्त्रीय गायक डॉ. प्रो. हरविंदर सिंह द्वारा मधुर गायन और कलकत्ता के प्रसिद्द सरोद वादक श्री देबाशीष भट्टाचार्य द्वारा खूबसूरत सरोद वादन पेश किया गया। । केंद्र के सचिव श्री. सजल कोसर के साथ गुरु मां डॉ. शोभा कोसर भी इस अवसर पर उपस्थित थीं। केंद्र के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे यूट्यूब और फेसबुक पर भी इस कार्यक्रम का रोजाना सीधा प्रसारण किया जा रहा है।

सामान्य धारणा के अनुसार संगीत के विद्वान और समर्पित शिक्षक शायद ही कभी अच्छे संगीत कार्यक्रम करते हैं, लेकिन अपवाद हमेशा होते हैं जैसे पंडित वीजी जोग, डॉ शन्नो खुराना, श्रुति सदोलीकर, पंडित प्रतीक चौधरी। इसी तरह एक विद्वान, शिक्षक और कलाकार के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा पर मुहर लगाते हुए शहर के प्रो डॉ हरविंदर सिंह हैं, जिनके मंचीय प्रदर्शन हमेशा मनभावन संगीतमय स्वरों का स्वाद के साथ साथ सुखदायक संतुष्टि के सामंजस्य को बनाये रखते हैं । यमुनानगर में जन्मे और स्नातक, हरविंदर सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय से संगीत में मास्टर और डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की और वर्तमान में चंडीगढ़ पीजी गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गर्ल्स में पढ़ा रहे हैं।

दूसरी ओर 1986 में अखिल भारतीय शास्त्रीय वाद्य संगीत प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल करने के बाद युवा सरोद कलाप्रवीण पंडित देबाशीष भट्टाचार्य ने भारत के शास्त्रीय संगीत जगत में अपने आगमन की घोषणा की। अब आकाशवाणी का एक शीर्ष ग्रेड धारण करने वाले वे भारत के सबसे लोकप्रिय सरोद वादक और सेनिया शाहजहांपुर घराने (यूपी) के सच्चे पथ प्रदर्शक हैं। उनका संगीत प्रशिक्षण उनके पिता स्वर्गीय श्याम सुंदर भट्टाचार्य के संरक्षण में शुरू हुआ, उसके बाद उन्होंने पंडित रवि लहा जैसे प्रशंसित गुरुओं से कई वर्षों तक प्रशिक्षण लिया। उन्हें पद्मभूषण पंडित बुद्धदेव दासगुप्ता से सरोद की बारीकियां सीखने का सौभाग्य प्राप्त है।

आज के कार्यक्रम की शुरुआत प्रो हरविंदर जी के संगीतमई पेशकश से हुई। आलाप के बाद हरविंदर जी ने राग बागेश्री में निबद्ध बंदिश "सखी मन लगे न कौ जतन" विलम्बित एक ताल में प्रस्तुत की । इसके पश्चात अपनी मोहक आवाज में "जिन दरस दिए सरस किए" बोल के साथ उनकी अगली प्रस्तुति द्रुत तीन ताल में निबद्ध थी। इसके उपरांत इन्होने तीन ताल में तराना पेश किया । उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन खमाज से सजी ठुमरी जिसके बोल थे "मोरा मन हर ले गई" पेश करके खूब तालियां बटोरी । उनके साथ. तबले पर श्री मिथिलेश झा और श्री. हारमोनियम पर राजेंद्र बनर्जी ने बखूबी संगत की।

इस मधुर प्रस्तुति के बाद श्री. देबाशीष भट्टाचार्य ने अपनी अनूठी शैली पेश करने के लिए मंच संभाला। उन्होंने राग झिंझोटी में आलाप और जोड़ के साथ शुरुआत की और उसके बाद तीन ताल में विलम्बित रचना पेश की। फिर उन्होंने मध्य लय एक ताल में प्रस्तुति पेश की और इसके उपरांत राग कलावती में मध्य लय की रचना पेश की और उसके बाद द्रुत तीन ताल बंदिश पेश की। उन्होंने एक मनभावन धुन के साथ अपने कार्यक्रम का समापन किया। उनके साथ प्रख्यात तबला वादक पं. दुर्जय भौमिक ने संगत की

कार्यक्रम के अंत में कलाकारों को गुलदस्ते और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कल डॉ. तूलिका घोष अपने गायन से और पार्थ बोस के सितार से बंगाल का जादू दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेगा।