CHANDIGARH,28.12.21-प्राचीन कला केन्द्र द्वारा आयोजित किए जा रहे हेमंतोत्सव के अंतिम दिन दिल्ली से आए जानेमाने गजल गायक,संगीत रचयिता और निर्देशक श्री विनोद गंधर्व ने अपनी गजल गायकी से एक रूहानी शाम को संजोया । श्री विनोद गंधर्व अपने संगीतज्ञ परिवार से हैं जो अठाहरवीं पीढ़ी का नेतृत्व सफलतापूर्वक कर रहे हैं । इन्होंने बहुत से गुरूओं के सान्निध्य में संगीत और गजल गायकी की बारीकियां सीखीं । इन्होंने डॉ.कृष्ण लाल सेहगल,डॉ.सी.एल.वर्मा,डॉ.आर.एस.शांडिल,प्रोफैसर मनोज शर्मा,डॉ.रोशन भारती,पंडित भोलानाथ मिश्रा के साथ-साथ उस्ताद मेहंदी हसन से भी संगीत के गुरू से सीखे । इस कार्यक्रम का आयोजन एम.एल.कौसर सभागार में किया जा रहा है ।
इस अवसर पर कत्थक गुरू डॉ.शोभा कौसर,सचिव श्री सजल कौसर के साथ-साथ केन्द्र के प्रोजेकट,प्लानिंग एवं डेवलपमेंट विभाग के निदेशक श्री आशुतोष महाजन भी उपस्थित थे ।
आज के कार्यक्रम की शुरूआत विनोद गंधर्व ने एक खूबसूरत गजल ‘‘सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है’’ से की जो कि राग अहीर तोड़ी पर आधारित थी । इसके उपरांत ‘‘कभी यूं भी आ मेरी आंखों में कि मेरी नजर को भी खबर न हो’’ । उपरांत राग यमन और सरस्वती पर आधारित गजल ‘‘कैसे सुकून पाउं तुझे देखने के बाद,अब क्या गजल सुनाउं तुझे देखने के बाद’’ और साथ ही राग शुद्ध सारंग और श्याम कल्याण पर आधारित गजल ‘‘अपने साये से भी अश्कों को छुपा के रोना,जब भी रोना चिरागों को बुझा कर रोना’’ पेश करके खूब तालियां बटोरी । उपरांत राग पीलू बैरागी भैरव पर आधारित गजल‘‘क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला,जख्मे दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला’’ पेश करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके पश्चात डॉ. विनोद ने केन्द्र के प्रोजेकट,प्लानिंग एवं डेवलपमेंट विभाग के निदेशक श्री आशुतोष महाजन की लिखी गजल ‘‘जब कभी फूल मुस्कुराए हैं,जस्म कांटों के याद आए हैं’’ पेश की । इसके पश्चात डॉ.विनोद ने पारम्परिक रचना बन्ना पेश की । जिसे पुराने जमाने में राग दरबार में गाया जाता था । शास्त्रीय रागों से सजी इस रचना के बोल ‘‘हे बना मेरे सांवरे नूं दिंदी लोकां नू मॅंगवां नी’’ और साथ ही राजस्थानी मांड केसरीया बालम पेश करके खूब वाहवाही लूटी । गजलों को एक नए रंग के साथ शास्त्रीय गायकी का बेजोड़ नमूना डॉ.गंधर्व की गायकी का विशेष अंग है ।
कार्यक्रम के अंत में उन्होंने एक खूबसूरत नजम जो कि ‘‘कल आज और कल’’ की पूर्ण रूप से चरितार्थ कर रही थी । पेश की इ सनजम के बोल थे ‘‘दुख सुख था एक सबका अपना हो या बेगाना,एक वो भी था जमाना एक ये भी है जमाना ।
इस कार्यक्रम को बेजोड़ बनाने के लिए संगतकारों का बहुत योगदान रहा । डॉ.कुमार गंधर्व के साथ तबले पर श्री विक्रम गंधर्व,गिटार पर श्री विवके धीर,श्री शुभदीप कीबोर्ड पर और राजेश कुमार ने सारंगी पर बखूबी संगत की । कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की रजिस्ट्ार डॉ.शोभा कौसर,सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया ।