चंडीगढ़,23.09.22- आजादी के बाद धर्मनिरपेक्ष भारत में जो संविधान लागू किया गया वह धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम फ्रेंडली ज्यादा है। समान नागरिक अधिकारों की बात करने वाले संविधान में एक खास समुदाय को विशेष अधिकार क्यों दिए गए, इसका जवाब कांग्रेस को देना चाहिए। यह कहना है हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान का। उन्होंने पूछा कि धर्मनिरपेक्ष भारत में अल्पसंख्यक आयोग, मुस्लिम पर्सनल लॉ और वक्फ बोर्ड एक्ट के औचित्य पर राष्ट्रीय चर्चा होनी चाहिए।

डॉ. चौहान ने कहा कि जिन्हें 'गजवा ए हिंद' की परिकल्पना झूठ लगती है, उन्हें वक्फ बोर्ड एक्ट को पढ़ना चाहिए। संविधान में किए गए खतरनाक प्रावधानों से सचेत करते हुए डॉ. चौहान ने कहा कि दरअसल देश के इस्लामीकरण की कोशिशें आजादी के बाद से ही शुरू हो गई थीं। 1947 के आसपास नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अचानक राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो जाना और जनभावनाओं को कुचलते हुए देश की बागडोर एक 'एक्सीडेंटल हिंदू' के हाथों में सौंप दिया जाना कोई संयोग नहीं था। इन घटनाओं के पीछे छिपी मंशा को समझने की जरूरत है। आजाद भारत में एक के बाद एक ऐसे कई कानून बनाए गए जो भारतीय संविधान के समानता के सिद्धांत के विपरीत हैं। कई कानून प्रथमदृष्टया एक विशेष समुदाय को ध्यान में रखकर बनाए गए प्रतीत होते हैं। धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए के निहितार्थ तो देर-सवेर लोगों की समझ में आ गए, लेकिन वक्फ कानून का खतरा अब भी बरकरार है।

डॉ. चौहान ने बताया कि वक्फ बोर्ड का गठन भारत में सर्वप्रथम 1954 में हुआ था। इसका मुख्य काम देश में रह रहे मुसलमानों से जुड़े मामलों और उनकी संपत्तियों की देखरेख करना था। इसके कई प्रावधान आपत्तिजनक थे जिन्हें वर्ष 1995 में कांग्रेस की पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा संशोधन के पश्चात असीमित शक्तियां दे दी गईं। वक्फ एक्ट का अनुच्छेद 40 कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड को लगता है कि अमुक संपत्ति उसकी है तो वह सीधा संबंधित क्षेत्र के डीएम को उक्त संपत्ति को कब्जे से मुक्त करा कर उसके हवाले करने का आदेश जारी कर सकता है। वक्फ बोर्ड के लिए यह बताना भी जरूरी नहीं है कि किसी संपत्ति पर दावा करने का उसके पास क्या आधार है? डीएम या स्थानीय प्रशासन को 24 घंटे के भीतर वक्फ बोर्ड के आदेश का पालन करना होगा। उसके पास इस आदेश को मानने के सिवा कोई चारा नहीं है। वक्फ एक्ट के मुताबिक पीड़ित व्यक्ति को ही अपनी संपत्ति पर अपना अधिकार साबित करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।