कुरुक्षेत्र, 08.03.22- महिलाओं की महत्ता मात्र एक दिन के विमर्श का विषय नहीं, अपितु यह निरंतर उस दिव्यता को नमन करना है जो एक जननी के रूप में महिला को ईश्वर ने प्रदान की है। हमें महिलाओं की सक्रिय व प्रभावी भूमिका के संदर्भ में पश्चिमी मान्यताओं का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। हमारी वैदिक परंपराओं में महिला अधिकारों की स्थिति बहुत मजबूत रही है। कानून और संविधान में वर्णित व्यवस्थाओं के अतिरिक्त समाज को लिंगभेद समाप्त करने के लिए स्वयं आगे आना होगा।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर स्थानीय प्रेरणा वृद्ध आश्रम में आयोजित संगोष्ठी के दौरान हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के कुलपति डॉ. बलदेव कुमार के उद्बोधनों का सार यही था। संगोष्ठी का विषय था - 'प्रजातांत्रिक व्यवस्था और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका'।

डॉ. चौहान ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं अनेक प्रकार से सक्रिय हैं, किंतु पंचायतों के अंतर्गत अनेक स्थानों पर ऐसी स्थितियां अब भी देखी जाती हैं कि पद पर मौजूद होते हुए भी एक महिला अपने अधिकारों का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाती। महिलाओं को पद के साथ-साथ उस मानसिकता को भी अपनाना होगा जिसमें वह स्वतंत्रता से अपने अर्थ और अधिकारों का प्रयोग कर पाएं। हम सबको यह सुनिश्चित करना होगा कि यह प्रयोग पश्चिम से प्रेरित न हो, बल्कि हमारी अपनी संस्कृति का संवाहक हो। उनके विचार से सहमति जताते हुए कुलपति डॉ. बलदेव कुमार ने कहा कि हम जिस संस्कृति के संवाहक हैं उसमें नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है। हम सबको यह मिलकर सोचना होगा कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो इसी भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की हो गई और जो आज खुद अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है। महिलाओं को उचित सम्मान देने के लिए हमें सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना होगा।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के कुलपति डॉ. बलदेव कुमार थे। उनके अलावा संगोष्ठी में विचार रखने के लिए आमंत्रित अन्य विद्वानों में डॉ. शालिनी शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, ऋषि मारकंडेश्वर कॉलेज, शाहबाद और गीता कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कुरुक्षेत्र की प्रधानाचार्या सुमन बत्रा भी शामिल थीं।

डॉ. शालिनी शर्मा ने कहा कि मुगलकालीन विषमताओं के चलते समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की हो गई थी। उसे पुनः अपने पुराने वैभव पर स्थापित करने हेतु भारतीय संविधान में विभिन्न प्रावधान करने के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। वास्तव में महिला दिवस की आवश्यकता ही इस बात का प्रमाण है कि समाज में कहीं न कहीं ऐसी स्थिति है जिसके कारण महिलाओं को वह स्थान अब भी प्राप्त नहीं हो सका है जिसकी एक आदर्श समाज में कल्पना की गई है।

इस अवसर पर उल्लेखनीय कार्यों के लिए 15 महिलाओं को 'नारी शक्ति सम्मान, 2022' से सम्मानित किया गया। इनमें करनाल की साहित्यकार ज्ञानी देवी, श्रीमती पूनम रानी सरपंच, डॉ. अनुपमा सैनी (चिकित्सक), श्रीमती शालिनी गर्ग (गृहिणी), करनाल की समाजसेवी पूनम बंसल, डॉ. अनामिका (सक्रिय युवा), स्वदेशी उत्पादों के क्षेत्र में कार्य करने वाली सुश्री श्रुति, अंबाला की सुश्री सुरेखा (खेल),श्रीमती मोनिका सिंगला, श्रीमती सुमन सांगवान, श्रीमती दीपमाला, श्रीमती ज्योति कौशल, श्रीमती शकुंतला देवी, श्रीमती ममता सूद और श्रीमती संगीता बिंदल के नाम शामिल हैं। संगोष्ठी के दौरान मंच का संचालन डॉ. रूकमेश चौहान ने किया।कार्यक्रम के अंत में प्रेरणा संस्थान की अध्यक्षा रेनू खग्गर ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी अतिथियों का आभार जताया।