करनाल, 19.01.22- भारत को बाहरी दुश्मनों से ज्यादा आंतरिक दुश्मनों से खतरा है। हमें इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि अब हमारे घर भी बाहरी शत्रुओं की सीधी पहुंच में हैं। यह हमारे अपने देश के भीतर तेजी से तैयार हो रहा युद्ध का वह नया मैदान है जिसमें लड़ाई सिर्फ हथियारों के दम पर नहीं लड़ी जा सकती। दुश्मनों ने अपनी रणनीति बदली है, हमें भी अपना तरीका बदलना होगा। यह कहना है हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान का। यह टिप्पणी उन्होंने हिंदुओं और देश के खिलाफ जहर उगलने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना तौकीर रजा को कांग्रेस में शामिल किए जाने पर यहां जारी एक वक्तव्य में की।

डॉ. चौहान ने कहा कि दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने देश के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले शत्रुओं के जिस ढाई फ्रंट की बात की थी, मौलाना तौकीर रजा और उसका स्वागत करने वाली कांग्रेस उसी आधे मोर्चे का उजागर चेहरा हैं। मौलाना तौकीर रजा ने साफ-साफ कहा है कि यदि सत्ता मुस्लिमों के हाथ में आई और वे बेकाबू हो गए तो हिंदुओं को सर छिपाने के लिए जगह नहीं मिलेगी। भारत का नक्शा बदल जाएगा। इसे अनायास और नासमझी में दिया गया बयान समझना भूल होगी। अभी कुछ ही दिन पहले एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने लखनऊ में बयान दिया था कि जब योगी और मोदी चले जाएंगे तब हिंदुओं को बचाने कौन आएगा।

भाजपा प्रवक्ता डॉ. चौहान ने कहा कि यह सिर्फ बयान नहीं, बल्कि एक खतरनाक चेतावनी और दूषित राजनीतिक सोच है जिसने 1947 में देश के दो टुकड़े कर दिए थे। भारत विभाजन से पहले मौलाना तौकीर रजा और ओवैसी की तरह ही मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की धमकी दी थी। इस धमकी का परिणाम पूरे देश ने देखा था। तौकीर और ओवैसी जैसे लोगों की एक लंबी सूची है जो बिना शोर किए दीमक की तरह देश को खोखला करने की अपनी मुहिम में निरंतर जुटे हुए हैं।

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि देश का विभाजन और पहले प्रधानमंत्री का चयन एक बड़े राजनीतिक एजेंडे के तहत हुआ था। देश की आजादी के 75 वर्षों बाद देश आज इसी एजेंडे की ओर जाता हुआ दिख रहा है। धारा 370, 35 ए और धर्मनिरपेक्षता देश को कमजोर करने और हमारी राष्ट्रीय पहचान मिटाने के उद्देश्य से तैयार किए गए टूलकिट का हिस्सा प्रतीत होती हैं। उन्होंने कहा कि देश के संविधान में ऐसे कई प्रावधान मौजूद हैं जिनके पीछे का तर्क समझना मुश्किल है। कहीं-कहीं तो ऐसा भी लगता है कि कुछ प्रावधानों को जानबूझकर अपरिभाषित छोड़ा गया है ताकि भ्रम और संशय की गुंजाइश बनी रहे। आर्टिकल 14, 30 ए, अल्पसंख्यक कानून और वक्फ बोर्ड कानून आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।