करनाल, 17.-01.22- हिंदुत्व या हिंदू जीवन पद्धति प्रकृति के नियमों से प्रेरित है। हिंदू परंपराओं और लगभग सभी पर्व त्योहारों के पीछे कोई न कोई विज्ञान छिपा है। इसलिए इस जीवन पद्धति को धर्म कहा जाता है। धर्म अर्थात धारण करने योग्य। यह धर्म सिर्फ किसी खास भौगोलिक क्षेत्र के विशेष लोगों के लिए नहीं, बल्कि देश, काल और परिस्थिति से परे संपूर्ण मानव जाति के लिए है जो सृष्टि के रहने तक प्रभावी रहेगा। यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं हरियाणा भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कही।

डॉ. चौहान ने कहा कि हिंदुत्व की चर्चा प्रकृति के नियमों को समझने जैसा है। इसलिए राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंदुत्व को सांप्रदायिकता से जोड़कर देखना न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि बहुत बड़ी नासमझी भी है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं का कोई त्यौहार निरर्थक नहीं होता। उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक सोच छिपी होती है। उदाहरण के तौर पर हम मकर सक्रांति को ही लें। इस दिन हम सूर्य को नमन करते हैं, नए अन्न की पूजा करते हैं और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं। सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है जो पृथ्वी पर मौजूद समस्त जीवन को संचालित करता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य का कम ऊर्जा वाले क्षेत्र दक्षिणायन से ज्यादा ऊर्जा वाले क्षेत्र उत्तरायण में प्रवेश होता है। ऊर्जा बढ़ने से जीवन की गति तेज होती है और नए उत्साह का संचार होता है। मन-मस्तिष्क में नई ऊर्जा पैदा होती है।

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि इसी प्रकार गाय, कुत्ते और अन्य पशु-पक्षियों को रोटी व दाना-पानी देने के पीछे भी प्रकृति के सहअस्तित्व का सिद्धांत छिपा है जो पर्यावरण के संतुलन के लिए आवश्यक है। पर्यावरण के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऊर्जा के महान स्रोत सूर्य की महत्ता को देखते हुए ही इसे देवता का स्थान दिया गया है। इसकी महत्ता इतनी है कि सूर्य नमस्कार के भी चमत्कारिक लाभ महसूस किए जा सकते हैं। इसे सांप्रदायिक बताकर इसका विरोध करना जड़ मानसिकता का सबूत है। अपनी जड़ों की ओर लौटना सांप्रदायिक कैसे हो सकता है? ऐसी ही मानसिकता के लोग हिंदू और हिंदुत्व को दो अलग-अलग चीजें समझते हैं।