करनाल,26.05.21- ब्लैक फंगस के जीवाणु नम जगहों पर पनपते हैं। इनमें आपके घर का रेफ्रिजरेटर भी शामिल हो सकता है। बंद फ्रिज के अंदर यदि ब्रेड लंबे समय तक रखा रहे तो उसमें फंगस उत्पन्न होने लगता है। इसके अलावा लकड़ी पत्ते व अन्य जगहों पर भी फंगस पनपता है जो इस बीमारी का कारण बन सकता है। कोरोना के उपचार के दौरान कई बार ऐसा भी देखा गया है कि लोग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में डिस्टिल्ड वाटर के बजाय साधारण पानी डाल देते हैं। इससे भी ब्लैक फंगस पैदा होता है। इसलिए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में साधारण पानी का इस्तेमाल कतई न करें।

उपरोक्त महत्वपूर्ण जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान के बीच चर्चा के दौरान सामने आई। डॉ. चौहान ने बताया कि ब्लैक फंगस सीधा आंख में प्रवेश नहीं करता। इस जीवाणु के मस्तिष्क तक पहुंचने के रास्ते में कई चरण हैं। मसलन यह सांस के साथ नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकता है या ग्रहण किए जाने वाले भोज्य पदार्थों के साथ भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। इसके अलावा चोट लगने पर यदि त्वचा में छेद हो जाए, तो उस स्थान से भी फंगस शरीर में प्रवेश कर सकता है। ब्लैक फंगस कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को ही आम तौर पर प्रभावित करता है।

ब्लैक फंगस शरीर में प्रवेश करने के बाद किस प्रकार नुकसान पहुंचाता है? ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान के इस सवाल पर नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया की ब्लैक फंगस नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करने के बाद पहले साइनस को प्रभावित करता है। उसके बाद यह जबड़ों की मांसपेशियों या चीक बोन में अपना ठिकाना बनाता है जिसके फलस्वरूप गालों में सूजन आ जाती है। इसके बाद यह दांतो को प्रभावित करता है और फिर आंख में प्रवेश करता है।

डॉ चौहान ने बताया कि शरीर में प्रवेश करने के बाद ब्लैक फंगस के जीवाणु धमनियों में रक्त को जमा देते हैं। इस प्रक्रिया में शरीर की कोशिकाएं मरने लगती हैं। यह अत्यंत खतरनाक स्थिति होती है। ब्लैक फंगस के रोगियों की मृत्यु दर 50 फ़ीसदी आंकी गई है जो चिंताजनक है।

ब्लैक फंगस से सबसे ज्यादा खतरा किन-किन लोगों को हो सकता है? ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया कि कोरोना के उपचार के दौरान स्टेरॉइड का अत्यधिक सेवन करने वाले, अनियंत्रित मधुमेह के रोगियों, एचआईवी से संक्रमित लोगों, किडनी की बीमारी से ग्रस्त और इम्यूनो सप्रेसेंट दवाओं का सेवन करने वाले लोगों को ब्लैक फंगस से संक्रमित होने का खतरा सबसे ज्यादा है। ब्लैक फंगस के रोगियों को उपचार के लिए खून की नस में दवा दी जाती है जो कई दिनों तक चलता है। इसलिए, ब्लैक फंगस के रोगियों का उपचार हर हालत में अस्पताल में ही कराना होगा। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ राजेंद्र सिंह चौहान ने यह भी सलाह दी कि पल्स ऑक्सीमीटर की तरह अब हर घर में ग्लूकोमीटर भी रखना जरूरी हो गया है। ऐसे कई मामले देखे गए हैं कि जो लोग कोरोना संक्रमण से पहले डायबिटीज के रोगी नहीं थे, उनमें भी ठीक होने के बाद मधुमेह के लक्षण पाए जा रहे हैं। ऐसा स्टेरॉयड की दवाएं लेने के कारण हो रहा है।

ब्लैक फंगस हो जाने पर इसके लक्षणों को कैसे पहचाना जाए? डॉ. चौहान के इस सवाल पर नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी यदि बुखार आए, छाती में असहजता महसूस हो, आंखों से धुंधला दिखे, मल में खून आए, नाक से काला जैसा तरल पदार्थ निकलने लगे और तालू में भी काले धब्बे नजर आए तो इसे ब्लैक फंगस का लक्षण समझना चाहिए। आंख में प्रवेश कर जाने के बाद ब्लैक फंगस के जीवाणु तेजी से फैलते हैं और 3 से 4 दिनों के भीतर मरीज की मृत्यु की भी नौबत आ सकती है। लेकिन यदि इसका समय पर उपचार शुरू कर दिया जाए तो शत-प्रतिशत इलाज संभव है।