मुंह खुर की बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं, चारे में भी करें बदलाव: डॉ. चौहान
April 22, 2021 03:53 PM
करनाल,22.04.21- गर्मी के मौसम में पशुओं में मुंह - खुर व गलघोंटू आदि बीमारियों का होना आम बात है। इसलिए पशुपालन व्यवसाय से जुड़े किसान इससे बचाव के लिए अपने दुधारू पशुओं को इसका टीका अवश्य लगवाएं। अप्रैल और मई का महीना पशुओं के टीकाकरण का सबसे उपयुक्त समय है। इसके साथ ही उनके चारे में भी थोड़ा बदलाव करना जरूरी है। गर्मी आते ही हरे चारे की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में उनके चारे में दनीर या दाने की मात्रा बढ़ानी चाहिए। दाने में गेहूं और जौ की मात्रा बढ़ाना आवश्यक है। हरे चारे में मक्का लोबिया या ज्वार लोबिया को शामिल करना चाहिए।उक्त जानकारी करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बृजेश मीणा ने दी। वह मंगलवार को रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम 'वेकअप करनाल' में पशुपालन, डेयरी व्यवसाय एवं पशुओं की देखभाल से जुड़े विषयों पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान से चर्चा कर रहे थे। इस दौरान पशुओं की नस्ल सुधारने से लेकर उनके रखरखाव तक कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।डॉ. चौहान ने कहा कि पशुपालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधानों के लिए एनडीआरआई देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विख्यात है और यह लगातार चार वर्षों से देश के कृषि विश्वविद्यालयों में शीर्ष स्थान पर है। उन्होंने पशुपालन और खेती के तौर तरीकों में निरंतर बदलाव करते रहने का सुझाव दिया।एनडीआरआई के कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ. मीणा ने बताया कि यह एक डीम्ड विश्वविद्यालय है जहां पशुपालन से जुड़े विभिन्न विषयों पर कोर्स करवाए जाते हैं और इच्छुक किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके लिए किसानों से फीस के तौर पर कुछ धनराशि भी ली जाती है। संस्थान में प्रशिक्षण के लिए रहने - खाने से लेकर अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध कराई जाती हैं।डॉ. बृजेश मीणा ने बताया कि संकर प्रजाति के पशु तैयार करने और उनकी नस्ल सुधारने में एनडीआरआई का विश्व भर में नाम है। वर्ष 1991 में इस संस्थान ने विश्व का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बफेलो (भैंस) पैदा करने का श्रेय प्राप्त किया था। संस्थान की ओर से पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए अनुसंधान कार्य निरंतर जारी है। वर्ष 2008 में क्लोनिंग की दिशा में भी कदम बढ़ाया गया और विश्व की पहली क्लोन भैंस भी यहीं तैयार की गई। संस्थान के निदेशक डॉ. एम एस चौहान के नेतृत्व में टीम ने क्लोनिंग पर अनुसंधान शुरू किया था।डॉ. मीणा ने बताया कि एनडीआरआई की स्थापना 1 जुलाई 1923 को बेंगलुरु में हुई थी जिसे 1955 में करनाल मुख्यालय में स्थापित किया गया। यहां बीटेक, एमएससी और पीएचडी के कोर्स करवाए जाते हैं और कोर्स पूरा होते ही नौकरी मिल जाती है। संस्थान में करीब 25 कर्मचारी हैं और दो हजार के करीब उन्नत नस्ल की गाएं और भैंसें हैं।डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने चर्चा के दौरान पशुओं के रखरखाव और उनके चारे से संबंधित सुझाव मांगे तो डॉ. मीणा ने बताया कि पशुओं को दाना और चारा चार-पांच भागों में बांट कर थोड़े-थोड़े अंतराल पर खिलाना चाहिए ताकि यह पशुओं को सुगमता से पच जाए। उन्हें तरल आहार पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए और इसके साथ ही 40 - 50 ग्राम मिनरल भी अवश्य देना चाहिए। इसके अलावा पशुओं को सीधी धूप से बचाकर ठंडे स्थानों पर बांधना चाहिए और ताजा पानी पिलाना चाहिए। पशुओं के बांधने की जगह ढलान जैसी हो।डॉ. चौहान ने डॉ. मीणा से एनडीआरआई के सात दिवसीय कमर्शियल डेयरी फार्मिंग प्रशिक्षण के संबंध में जानकारी मांगी तो डॉ. मीणा ने बताया कि एनडीआरआई में एक बीपीटी यूनिट है जो किसानों को कमर्शियल डेयरी फार्मिंग का प्रशिक्षण देती है। इसके के लिए उनसे बतौर फीस ₹13000 लिए जाते हैं। एक बैच में करीब 25 किसान होते हैं।डॉ. चौहान ने कहा कि उचित प्रशिक्षण लेकर पशुपालन को एक लाभ का व्यवसाय बनाया जा सकता है। इस पर डॉ. मीणा ने उनका समर्थन करते हुए कहा कि तीन साल के बाद पशुपालन के व्यवसाय में लाभ ही लाभ है।कमर्शियल डेयरी फार्मिंग में कौन से पशुओं का पालन सबसे उपयुक्त है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. मीणा ने बताया कि गीर और थारपारकर अच्छी नस्ल की गायें हैं, लेकिन कमर्शियल पशुपालन के लिए काले - उजले रंग की कर्नफ्रीज नस्ल की गायें सर्वाधिक उपयुक्त हैं। इस दौरान एचएफ बनाम साहीवाल नस्ल की गायों पर भी चर्चा हुई। डॉ. मीणा ने बताया कि गीर और साहिवाल नस्ल की गायों का ट्रेंड बढा है और उसकी कीमत भी बढ़ी है। डॉ. मीणा ने कहा कि उचित समय आने पर गर्भाधान के लिए 16 से 18 घंटे के बीच पशुओं को एक टीका अवश्य लगाना चाहिए और यह कार्य कुशल डॉक्टर के हाथों करवाना ही उचित होगा। सीमेन का टीका लगाते समय अधिकतम 2 से 5 मिनट का समय लगना चाहिए।
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